12-03-84   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सन्तुष्टता

सर्व खज़ानों और शक्तियों से मालामाल करने वाले बापदादा अपने प्रसन्नचित्त, सन्तुष्ट बच्चों के प्रति बोलेः-

आज बापदादा चारो ओर के दूर होते समीप रहने वाले सभी बच्चों के सन्तुष्टता वा रूहानियत और प्रसन्नता की मुस्कराहट देख रहे थे। सन्तुष्टता रूहानियत की सहज विधि है। प्रसन्नता सहज सिद्धि है। जिसके पास सन्तुष्टता है वह सदा प्रसन्न स्वरूप अवश्य दिखाई देगा। सन्तुष्टता सर्व प्राप्ति स्वरूप है। सन्तुष्टता सदा हर विशेषता को धारण करने में सहज साधन है। सन्तुष्टता का खज़ाना सर्व खज़ानों को स्वत: ही अपनी तरफ आकार्षित् करता है। सन्तुष्टता ज्ञान की सब्जेक्ट का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सन्तुष्टता बेफिकर बादशाह बनाती है। सन्तुष्टता सदा स्वमान की सीट पर सेट रहने का साधन है। सन्तुष्टता महादानी, विश्व कल्याणी वरदानी सदा और सहज बनाती है। सन्तुष्टता हद के मेरे तेरे के चक्र से मुक्त कराए स्वदर्शन चक्रधारी बनाती है। सन्तुष्टता सदा निर्विकल्प, एकरस के विजयी आसन की अधिकारी बनाती है। सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन, सहज स्मृति के तिलकधारी, विश्व परिवर्तन के सेवा के ताजधारी इसी अधिकार के सम्पन्न स्वरूप में स्थित करती है। सन्तुष्टता ब्राह्मण जीवन का जीयदान है। ब्राह्मण जीवन के उन्नति का सहज साधन है। स्व से सन्तुष्ट, परिवार से सन्तुष्ट और परिवार उनसे सन्तुष्ट। किसी भी परिस्थिति में रहते हुए, वायुमण्डल वायब्रेशन की हलचल में भी सन्तुष्ट। ऐसे सन्तुष्टता स्वरूप, श्रेष्ठ आत्मा विजयी रत्न के सर्टिफिकेट के अधिकारी है। तीन सर्टिफिकेट लेने पड़ें –

(1) स्व की स्व से सन्तुष्टता (2) बाप द्वारा सदा सन्तुष्टता (3) ब्राह्मण परिवार द्वारा सन्तुष्टता।

इससे अपने वर्तमान और भविष्य को श्रेष्ठ बना सकते हो। अभी भी सर्टिफकेट लेने का समय है। ले सकते हैं लेकिन ज्यादा समय नहीं है। अभी लेट हैं लेकिन टूलेट नहीं हैं। अभी भी सन्तुष्टता की विशेषता से आगे बढ़ सकते हो। अभी लास्ट सो फास्ट सो फर्स्ट की मार्जिन है। फिर लास्ट सो लास्ट हो जायेंगे। तो आज बापदादा इसी सर्टिफकेट को चेक कर रहे थे। स्वयं भी स्वयं को चेक कर सकते हो। प्रसन्नचित हैं या प्रश्नचित हैं? डबल विदेशी प्रसन्नचित वा सन्तुष्ट हैं? प्रश्न खत्म हुए तो प्रसन्न हो ही गये। सन्तुष्टता का समय ही संगमयुग है। सन्तुष्टता का ज्ञान अभी है। वहां इस सन्तुष्ट-असन्तुष्ट के ज्ञान से परे होंगे। अभी संगमयुग का ही यह खज़ाना है। सभी सन्तुष्ट आत्मायें सर्व को सन्तुष्टता का खज़ाना देने वाली हो। दाता के बच्चे मास्टर दाता हो। इतना जमा किया है ना! स्टाक फुल कर दिया है या थोड़ा कम रह गया है? अगर स्टाक कम है तो विश्वकल् याणकारी नहीं बन सकते। सिर्फ कल्याणी बन जायेंगे। बनना तो बाप समान है ना। अच्छा-

सभी देश विदेश के सर्व खज़ानों से सम्पन्न मास्टर सर्वशक्तिवान होकर जा रहे हो ना। आना है तो जाना भी है। बाप भी आते हैं तो जाते भी हैं ना। बच्चे भी आते हैं और सम्पन्न बनकर जाते हैं। बाप समान बनाने के लिए जाते हैं। अपने ब्राह्मण परिवार की वृद्धि करने के लिए जाते हैं। प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने जाते हैं। इसीलिए जा रहे हो ना! अपनी दिल से वा बन्धन से नहीं जा रहे हो। लेकिन बाप के डायरेक्शन से सेवा प्रति थोड़े समय के लिए जा रहे हो! ऐसे समझ जा रहे हो ना? ऐसे नहीं कि हम तो हैं ही अमेरिका के, आस्ट्रेलिया के.... नहीं। थोड़े समय के लिए बापदादा ने सेवा के प्रति निमित्त बनाकर भेजा है। बापदादा भेज रहे हैं, अपने मन से नहीं जाते। मेरा घर है, मेरा देश है। नहीं! बाप सेवा स्थान पर भेज रहे हैं। सभी सदा न्यारे और बाप के प्यारे! कोई बन्धन नहीं। सेवा का भी बन्धन नहीं। बाप ने भेजा है बाप जाने। निमित्त बने हैं, जब तक और जहां निमित्त बनावें तब तक के लिए निमित्त हैं। ऐसे डबल लाइट हो ना! पाण्डव भी न्यारे और प्यारे हैं ना। बन्धन वाले तो कोई नहीं हैं। न्यारा बनना ही प्यारा बनना है। अच्छा-

सदा सन्तुष्टता की रूहानियत में रहने वाले, प्रसन्नचित रहने वाले, सदा हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा सर्व को सन्तुष्टता का बल देने वाले, दिलशिकस्त आत्माओं को खज़ानों से शक्तिशाली बनाने वाले, सदा विश्व-कल्याणकारी बेहद के बेफिकर बादशाहों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

दादी जी तथा दादी जानकी जी से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

होलीहंसों की रूप-बसन्त की जोड़ी अच्छी है। यह (जानकी दादी) शान्ति से रूप बन सेवा ज्यादा पसन्द करती है और इनको तो बोलना ही पड़ता है। यह जब भी चाहे एकान्त में चली जाती है। इसे रूप की सेवा पसन्द है, वैसे तो आलराउण्ड हैं लेकिन फिर भी रूप-बसन्त की जोड़ी है। दोनों संस्कारों की आवश्कता है। जहां वाणी काम नहीं करेगी तो रूप काम करेगा और जहाँ रूप काम नहीं कर सकता वहां बसन्त काम करेगा। तो जोड़ी अच्छी है। जो जोड़ी बनती है। वह सब अच्छी है। वह भी जोड़ी अच्छी थी - यह भी अच्छी है। (दीदी के लिए) ड्रामा में वह गुप्त नदी हो गई। उनसे डबल विदेशियों का भी बहुत प्यार है। कोई बात नहीं। दीदी का दूसरा रूप देख लिया। सब देखकर कितने खुश होते हैं। सभी महारथी साथ हैं। बृजइन्द्रा, निर्मलशान्ता सब दूर होते भी साथी हैं! शक्तियों का अच्छा सहयोग है। सभी एक दो को आगे रखने के कारण आगे बढ़ रहे हैं। और निमित्त शक्तियों को आगे रखने के कारण सब आगे हैं। सेवा के बढ़ने के कारण ही यह है - एक दो को आगे बढ़ाना। आपस में प्यार है। युनिटी है। सदा दूसरे की विशेषता वर्णन करना यही सेवा में वृद्धि करना है। इसी विधि से सदा वृद्धि हुई है और होती रहेगी। सदैव विशेषता और विशेषता देखने का औरों को सिखाना यही संगठन की माला की डोर है। मोती भी तो धागे में पिरोते हैं ना। संगठन का धागा है ही यह। विशेषता के सिवाए और कोई वर्णन नहीं। क्योंकि मधुबन महान भूमि है। महा भाग्य भी है तो महा पाप भी है। मधुबन में जा करवे अगर ऐसा कोई व्यर्थ बोलता है तो उसका बहुत पाप बन जाता है। इसलिए सदैव विशेषता देखने का चश्मा पड़ा हुआ हो। व्यर्थ देख नहीं सकते। जैसे लाल चश्मे के सिवाए लाल के और कुछ देखते हैं क्या! तो सदैव यही चश्मा पड़ा हुआ हो - विशेषता देखने का। कभी कोई बात देखें भी तो उसका वर्णन कभी नहीं करो। वर्णन किया भाग्य गया। कुछ भी कमी आदि है तो उसका जिम्मेवार बाप है, निमित्त किसने बनाया! बाप ने। तो निमित्त बने हुए की कमी वर्णन करना माना बाप की कमी वर्णन करना। इसलिए इन्हों के लिए कभी भी बिना शुभ भावना के और कोई वर्णन नहीं कर सकते।

बापदादा तो आप रत्नों को अपने से भी श्रेष्ठ देखते हैं। बाप का शृंगार यह है ना। तो बाप को शृंगारने वाले बच्चे तो श्रेष्ठ हुए ना। बापदादा तो बच्चों की महिमा कर खुश होते रहते हैं। वाह मेरा फलाना रत्न। वाह मेरा फलाना रत्न। यही महिमा करते रहते हैं। बाप कभी किसकी कमज़ोरी को नहीं देखते। ईशारा भी देते तो भी विशेषतापूर्वक रिगार्ड के साथ इशारा देते हैं। नहीं तो बाप को अथार्टी है ना, लेकिन सदैवी रिगार्ड देकर फिर ईशारा देते हैं। यही बाप की विशेषता सदा बच्चों में भी इमर्ज रहे। फॉलो फादर करना है ना।

बापदादा के आगे सभी मुख्य बहनें बैठी हैं

जीवनमुक्त जनक आपका गायन है ना। जीवनमुक्त और विदेशी दो टाइटल्स हैं।(दादी के लिए) यह तो है ही मणि। सन्तुष्टमणि, मस्तकमणि, सफलता की मणि, कितनी मणियाँ हैं! सब मणियाँ ही मणियाँ हैं। मणियों को कितना भी छिपाके रखो लेकिन मणी की चमक कभी छिप नहीं सकती। धूल में भी चमकेगी। लाइट का काम करेगी। इसलिए नाम भी वही है, काम भी वही है। इनका भी गुण वही है, देह मुक्त जीवन मुक्त। सदा जीवन की खुशी के अनुभव की गहाराई में रहती हैं। इसको ही कहते हैं - ‘जीवन मुक्त’।